बगहा(प.च.) :: आदर्श मित्रता की बात पर याद आता है सुदामा और श्री कृष्ण का प्रेम : रिपुसूदन

विजय कुमार शर्मा, कुशीनगर केसरी बगहा(प.चं.) बिहार। बगहा एक प्रखण्ड के चन्द्राहा रूपवलीया पंचायत के पिपरा गाँव मे नवरात्रि के सातवें दिन भी भारी संख्या में श्रोत कथा का आनंद लेते रहे। कथा वाचक ज्योतिषाचार्य पंडित रिपुसूदन द्विवेदी महाराज ने बताया कि जब भी हम आदर्श मित्रता की बात करते हैं तो सुदामा और श्री कृष्ण का प्रेम स्मरण हो आता है। एक ब्राह्मण, भगवान श्री कृष्ण के परम मित्र थे। वे बड़े ज्ञानी, विषयों से विरक्त, शांतचित्त तथा जितेन्द्रिय थे। वे गृहस्थी होकर भी किसी प्रकार का संग्रह परिग्रह न करके प्रारब्ध के अनुसार जो भी मिल जाता उसी में सन्तुष्ट रहते थे। उनके वस्त्र फटे पुराने थे। उनकी पत्नी के वस्त्र भी वैसे ही थे।उनकी पत्नी का नाम सुशीला था। नाम के अनुसार वह शीलवती भी थीं। वह दोनों भिक्षा मांगकर लाते और उसे ही खाते लेकिन यह बहुत दिन तक नहीं चल सका। कुछ वर्षों के बाद सुशीला इतनी कमजोर हो गईं कि चलने फिरने में उनका शरीर कांपने लगता। तब सुशीला का धैर्य थोड़ा कम हुआ और उन्होंने सुदामा जी से प्रार्थना की कि वह अपने बचपन के मित्र श्री कृष्ण के पास जाएँ, वे शरणागतवत्सल हैं। यदि अपनी स्थिति से उनको परिचय कराएगें तो, वह अवश्य ही हमारी मदद करेंगे। ऐसा सुनकर वह अपनी पत्नी से बोले यदि कोई भेंट देने योग्य वस्तु है तो दे दो, तब सुशीला ने पड़ोस के घर से चार मुठ्ठी तन्दुल माँगे और अपनी साड़ी का एक टुकड़ा फाड़कर उसमें बांध कर दे दिए।सुदामा जी चल पड़े, चलते-चलते वह जंगल के रास्ते समुद्र की खाड़ी के पास पहुँचे, भूख-प्यास से व्याकुल होकर वो वहीँ रास्ते में थककर सो गए।श्री कृष्ण अंतर्यामी तो थे ही, उन्होंने देखा उनका प्रेमी भक्त सुदामा उनसे मिलने आ रहा है। वो नहीं चाहते थे कि सुदामा को किसी प्रकार का कष्ट हो इसलिए उन्होंने योगमाया से जैसा कहा उन्होंने वैसा ही किया, जब प्रातःकाल सुदामा जी ने अपनी आँखें खोलीं तो देखा कि द्वारकाधीश भगवान की जय जयकार हो रही थी।सुदामा जी कुछ समझ ना पाए और अपने पास में खड़े व्यक्ति को अपना परिचय देते हुए कहा- मैं श्री कृष्ण का मित्र हूँ और उनसे मिलना चाहता हूँ। उस व्यक्ति ने कहा, “वो सामने महल है| मोके पर उपस्थित उक्त कथा सुन श्रोता झुम उठे