पटना :: घर में किताबों से भरे बक्से, दीवारों पर वशिष्ठ बाबू की लिखी हुई बातें..अब बनी प्रदर्शनी..

विजय कुमार शर्मा, कुशीनगर केसरी, बिहार, आरा। आइंस्टीन के सापेक्षता के सिद्धांत को चुनौती देने वाले महान गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह  गुरुवार की अहले सुबह बिहार के पटना चिकित्सा महाविद्यालय एवं अस्पताल (पीएमसीएच), पटना में निधन हो गया। वे 74 वर्ष के थे।दुनियाभर से चर्चित गणितज्ञों में शुमार किए जाने वाले वशिष्ठ नारायण निधन के बाद भी सरकारी उपेक्षा के शिकार बने और काफी देर तक उनका शव एंबुलेंस का इंतजार करता रहा। वहीं उनकी मौत की खबर जैसे ही बिहार के भोजपुर जिले के बसंतपुर उनके गांव पहुंचा लोगों में मातम पसर गया।


बता देंं कि परिजनों के साथ पटना के कुल्हरिया कांप्लेक्स के पास रहने वाले वशिष्ठ नारायण सिंह की तबीयत गुरुवार की सुबह अचानक खराब हो गई। बताया जा रहा है कि गुरुवार तड़के उनके मुंह से खून निकलने लगा। जिसके बाद उन्हें तत्काल परिजन पीएमसीएच लेकर गए जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। परिजनों का आरोप है कि वशिष्ठ नारायण सिंह की मृत्यु के 2 घंटे तक उनकी लाश अस्पताल के बाहर पड़ी रही। 2 घंटे के इंतजार के बाद एबुंलेंस उपलब्ध कराया गया।


बता देंं कि तकरीबन 40 साल से मानसिक बीमारी सिज़ोफ्रेनिया से पीड़ित वशिष्ठ नारायण सिंह पटना के एक अपार्टमेंट में गुमनामी का जीवन बित रहा था।बतादे कि इस हालात में भी उन्हें किताब, कॉपी और एक पेंसिल उनकी सबसे अच्छी दोस्त थी। पटना में उनके साथ रह रहे भाई अयोध्या सिंह बता रहे थे की वशिष्ठ नारायण सिंह जब वे अमरीका से लैटें तो अपने साथ 10 बक्से किताबें लाए थे, जिन्हें वो पढ़ा करते थे. बाक़ी किसी छोटे बच्चे की तरह ही उनके लिए तीन-चार दिन में एक बार कॉपी, पेंसिल लानी पड़ती थी। वही वशिष्ठ नारायण सिंह ने आंइस्टीन के सापेक्ष सिद्धांत को चुनौती दी थी. उनके बारे में मशहूर है कि नासा में अपोलो की लॉन्चिंग से पहले जब 31 कंप्यूटर कुछ समय के लिए बंद हो गए तो कंप्यूटर ठीक होने पर उनका और कंप्यूटर्स का कैलकुलेशन एक था। पटना साइंस कॉलेज में बतौर छात्र ग़लत पढ़ाने पर वह अपने गणित के अध्यापक को टोक देते थे. कॉलेज के प्रिंसिपल को जब पता चला तो उनकी अलग से परीक्षा ली गई जिसमें उन्होंने सारे अकादमिक रिकार्ड तोड़ दिए। पाँच भाई-बहनों के परिवार में आर्थिक तंगी हमेशा डेरा जमाए रहती थी लेकिन इससे उनकी प्रतिभा पर ग्रहण नहीं लगा। गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह पिछले कई दिनों से बीमार चल रहे थे. जब वह पीएमसीएच में भर्ती थे तो उनका हालचाल जानने के लिए नेताओं का तांता लगा रहा. वही बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से लेकर केंद्रीय मंत्री तक उन्हें देखने गए थे. वही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक उनके निधन पर शोक जता चुके हैं। वशिष्ठ नारायण सिंह ने महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन के सापेक्षता के सिद्धांत को चुनौती दी थी. उनके बारे में यह भी मशहूर है कि नासा में अपोलो की लांचिंग से पहले जब 31 कंप्यूटर कुछ समय के लिए बंद हो गए तो कंप्यूटर ठीक होने पर उनका और कंप्यूटर्स का कैलकुलेशन एक जैसा ही रहा था।


बिहार के भोजपुर जिले में 2 अप्रैल 1942 को लाल बहादुर सिंह (पिता) और श्रीमती लहासो देवी (माता) के घर जन्मे श्री वशिष्ठ नारायण सिंह ने प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा नेतरहाट आवासीय विद्यालय से प्राप्त की। अपने शैक्षणिक जीवनकाल से ही कुशाग्र रहे श्री सिंह पटना साइंस कॉलेज में पढ़ाई के दौरान गलत पढ़ाने पर गणित के अध्यापक को बीच में ही टोक दिया करते थे। घटना की सूचना मिलने पर जब कॉलेज के प्रधानाचार्य ने उन्हें अलग बुला कर परीक्षा ली, तो उन्होंने सारे अकादमिक रिकॉर्ड तोड़ दिए। महान गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह ने 1969 में कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी से पीएचडी की डिग्री हासिल की. इसके बाद वह वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी में एसोसिएट प्रोफेसर बन गए. वशिष्ठ नारायण ने नासा में भी काम किया, लेकिन वह 1971 में भारत लौट आए। भारत लौटने के बाद वशिष्ठ नारायण ने आईआईटी कानपुर, आईआईटी बंबई और आईएसआई कोलकाता में नौकरी की. 1973 में उनकी शादी वंदना सिंह से हो गई. शादी के कुछ समय बाद 1974 में उन्हें मानसिक दौरे आने लगे. 1975 में वह मानसिक बीमारी सिजोफ्रेनिया रोग से पीड़ित हो गए. इस बीमारी से ग्रसित होने के बाद उनकी पत्नी ने उनसे तलाक ले लिया।


कहा जाता है कि 1976 में इलाज और उनकी सारी जिम्मेदारी लेने को अमेरिका तैयार था, लेकिन परिजनों का आरोप है कि सरकार ने उन्हें अमेरिका जाने नहीं दिया और राजनीति के तहत 1976 से 1987 तक रांची के मेंटल हास्पिटल में भर्ती कराकर उनकी प्रतिभा को कुचल दिया गया। इस असामान्य व्यवहार से वंदना भी जल्द परेशान हो गईं और तलाक़ ले लिया. यह वशिष्ठ नारायण के लिए बड़ा झटका था। तक़रीबन यही वक्त था जब वह आईएसआई कोलकाता में अपने सहयोगियों के बर्ताव से भी परेशान थे क्योंकि भाई अयोध्या सिंह कहते हैं, "भैया (वशिष्ठ जी) बताते थे कि कई प्रोफ़ेसर्स ने उनके शोध को अपने नाम से छपवा लिया और यह बात उनको बहुत परेशान करती थी।"


साल 1974 में उन्हें पहला दौरा पड़ा, जिसके बाद शुरू हुआ उनका इलाज. जब बात नहीं बनी तो 1976 में उन्हें रांची में भर्ती कराया गया। घरवालों के मुताबिक़ इलाज अगर ठीक से चलता तो उनके ठीक होने की संभावना थी. लेकिन परिवार ग़रीब था और सरकार की तरफ़ से मदद नहीं मिली। 1987 में वशिष्ठ नारायण अपने गांव लौट आए. लेकिन 89 में अचानक ग़ायब हो गए. साल 1993 में वह बेहद दयनीय हालत में डोरीगंज, सारण में पाए गए।


आर्मी से सेवानिवृत्त डॉ वशिष्ठ के भाई अयोध्या सिंह बताते हैं, " उस वक्त तत्कालीन रक्षा मंत्री के हस्तक्षेप के बाद मेरा बेंगलुरु तबादला किया गया जहां भैया का इलाज हुआ. लेकिन फिर मेरा तबादला कर दिया गया और इलाज नहीं हो सका. वही कुछ दिन पहले जब उनका तबियत बिगड़ने लगी तो हमने उनको पीएमसीएच में भर्ती कराया जहा उनका इलाज चल रहा था। जहा सरकार की उपेक्षा के शिकार बने रहे जिस वजह से आज ? डॉ वशिष्ठ का परिवार उनके इलाज को लेकर अब नाउम्मीद हो चुका था. घर में किताबों से भरे बक्से, दीवारों पर वशिष्ठ बाबू की लिखी हुई बातें, उनकी लिखी कॉपियां उनको डराती थीं. डर इस बात का हुआ कि क्या वशिष्ठ बाबू के बाद ये सब रद्दी की तरह बिक जाएगा। जैसी कि उनकी भाभी प्रभावती कहती भी हैं, "हिंदुस्तान में मिनिस्टर का कुत्ता बीमार पड़ जाए तो डॉक्टरों की लाइन लग जाती है. लेकिन अब हमें इनके इलाज की नहीं किताबों की चिंता है. बाक़ी तो यह पागल ख़ुद नहीं बने, समाज ने इन्हें पागल बना दिया था."आज महान व्यक्ति ने दुनिया से अलविदा कह दीया। वही जैसे ही महान गणितज्ञ के पार्थिव शरीर भोजपुर के बसंतपुर उनके गांव पहुंचा लोगो की हुजूम देखने के लिए उमड़ पड़ा। वही भोजपुर के बिहार सरकार के मंत्री जय कुमार सिंह, DM, SP ने महान गणितज्ञ के पार्थिव शरीर को श्रद्धांजलि दी।