बेतिया(प.च.) :: देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद की मनाई गई पुण्यतिथि

शहाबुद्दीन अहमद, कुशीनगर केसरी, बिहार, बेतिया(प.च.)। भारत के प्रथम राष्ट्रपति, स्वर्गीय डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद की 135 वीं जयंती, सभी शिक्षण संस्थानों, सामाजिक संस्थानों में बड़ी धूमधाम से मनाई गई, इस अवसर पर उपस्थित जनसमूह को संबोधित करते हुए विभिन्न वक्ताओं ने स्वर्गीय राजेंद्र प्रसाद की उनकी पूरी जीवनी को पूरे दृष्टांत के साथ उनके चरित्र के साथ लोगों के अंदर प्रेरणा स्वरुप उनके जीवन को उद्धृत किया गया।
इस संबंध में डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद का चंपारण सत्याग्रह आंदोलन में भी गांधी के सहयोगी के रूप में अहम भूमिका रही है, नील के जुल्म के खिलाफ जब गांधी चंपारण पहुंचे और तीन कठिया प्रथा के विरुद्ध नील आयोग का गठन हुआ तो उसके लिए किसानों के बयान कलम बंद करने में डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद की भूमिका रही ,इनके साथ रामनवमी बाबू के साथ कुछ और लोग भी शामिल रहे। बेतिया के हजारीमल धर्मशाला और वृंदावन में भी उस समय डॉक्टर प्रसाद सत्याग्रह के कार्यकर्ताओं में शामिल हुए ,वैसे राजेंद्र बाबू का चंपारण के डीके शिकारपुर से गहरा लगाव रहा है, रिश्तेदारी की वजह स्वतंत्रता के बाद डीके शिकारपुर पहुंचे थे।
चंपारण के किसानों पर अंग्रेजों के जुल्म की वस्तुस्थिति का जायजा लेने पहुंचे महात्मा गांधी के निर्देश पर डॉ राजेंद्र प्रसाद ,अनुराग सिन्हा व अन्य स्वं य सेवक भी यहां पहुंचे और सभी ने पूर्ण समर्पण भाव से उनका सहयोग किया ,डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद पर गांधी के साहस समर्पण और कार्य के प्रति निष्ठा का जादुई प्रभाव चंपारण सत्याग्रह आंदोलन के दौरान पड़ा और उसी का परिणाम था कि जब महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन का बिगुल फूंका तो डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने अपनी वकालत को छोड़ने के साथ ही पटना विश्वविद्यालय को भी त्याग दिया। शिक्षा संस्कार का जब महात्मा गांधी ने निर्णय लिया कि उन्होंने अपने पुत्र को छोड़कर भारतीय विद्यापीठ में अध्ययन कराने का निर्णय लिया।
समाजसेवी ,अवध किशोर सिन्हा और शिकारपुर स्टेट परिवार के मधु वर्मा ने जानकारी दी है कि जल्दी के चंपारण सत्र के दौरान अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ाई में किसानों का बयान दर्ज करने में देशरत्न राजेंद्र प्रसाद के महत्वपूर्ण भूमिका रही है। आखिरकार महात्मा गांधी का एक सदस्य बनाया गया और अंग्रेजी सरकार को तीन कठिया प्रथा खत्म करनी पड़ी।
डॉ राजेंद्र प्रसाद की इससे पूर्व 135 वीं जयंती के अवसर पर वक्ताओं ने अपने विचारों से उपस्थित जनसभा को संबोधित करते हुए डॉ राजेंद्र प्रसाद की सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि उनके बताए हुए रास्ते पर चलकर देश प्रेम और देश हित में लोगों के साथ व्यवहार करके संप्रदायिक ताकतों के विरुद्ध आवाज खड़ा करने और इनके विचारों को समाज के निचले स्तर तक पहुंचाने का काम करने का संकल्प लिया गया ताकि यही सच्ची श्रद्धांजलि उनकी होगी।