छपरा :: रा.बा.स्वा. कार्यक्रम के तहत जिले में 4.5 लाख से अधिक बच्चों की हुयी स्क्रीनिंग, दिया गया हेल्थ कार्ड

विजय कुमार शर्मा, कुशीनगर केसरी, बिहार, छपरा। बच्चों की सेहत का अब स्वास्थ्य विभाग द्वारा खास ध्यान रखा जा रहा है। जाड़ा- बुखार जैसे सामान्य बीमारियों से लेकर बच्चों की जन्मजात विकृतियों को दूर करने में विभाग द्वारा कोई कोर- कसर नहीं छोड़ा जा रहा है। जिल में राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत एक साल में 4.5 लाख से अधिक बच्चों का इलाज किया गया है। साथ ही साथ इन सभी बच्चों को स्वास्थ्य विभाग की ओर से हेल्थ कार्ड भी उपलब्ध कराया गया है। प्रतिदिन 80 से 100 बच्चों की स्क्रीनिंग की जाती है।
जिले के मढौरा में राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत सबसे अधिक बच्चों की स्क्रीनिंग की गई और हेल्थ कार्ड का वितरण किया गया। यहां पर 38789 बच्चों का इलाज कर हेल्थ कार्ड दिया गया है। अमनौर में 26799, बनियापुर में 13751, छपरा सदर में 23062, दरियापुर में 29781, दिघवारा में 18874, एकमा में 36259, गड़खा में 32066, इसुआपुर में 16778, जलालपुर में 36125, लहलादपुर में 10555, मकेर में 15247, मांझी में 28310, मशरक में 21779, नगरा में 18333, पानापुर में 11897, परसा में 20881, रिविलगंज में 13577, सोनपुर में 29833, तरैया में 13673 बच्चों का इलाज कर हेल्थ कार्ड दिया गया है।  
डॉ. माधवेश्वर झा, सिविल सर्जन ने बताया जिले में वर्ष 2019 में राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत 4.56 लाख बच्चों का इलाज किया गया है। आरबीएसके कार्यक्रम में शून्य से अठारह वर्ष तक के सभी बच्चों की बीमारियों का समुचित इलाज किया जाता है। 0 से 6 वर्ष तक के बच्चों की स्क्रीनिंग आंगनबाड़ी केंद्रों में होती है जबकि 6 से 18 साल तक के बच्चों की स्क्रीनिंग उनके स्कूलों में जाकर की जाती ,ताकि चिह्नित बीमारियों के समुचित इलाज में देरी न हो। आंगनबाड़ी केंद्रों पर साल में दो बार यानि प्रति 6 महीने पर जबकि स्कूलों में साल में सिर्फ एक बार बच्चों के इलाज के लिए स्क्रीनिंग की जाती है। स्क्रीनिंग करते वक्त बच्चों को हेल्थ कार्ड भी उपलब्ध कराया जाता है।


आरबीएसके के जिला समन्वयक डॉ. अमरेंद्र कुमार ने बताया इस कार्यक्रम के तहत बच्चों में 30 तरह की बीमारियों की जांच कर उसका समुचित इलाज किया जाता है। इन सभी बीमारियों को चार मूल श्रेणियों में बांटकर इसे 4 डी का नाम दिया गया है। जिन तीस बीमारियों का इलाज किया जायेगा, उसमें जाड़ा- बुखार, सर्दी- खांसी, गैस्ट्रिक,पेट दर्द, कान दर्द, दस्त,दांत सड़ना, हकलापन, बहरापन, किसी अंग में सून्नापन, गूंगापन, चर्म रोग, नाक रोग आदि शामिल हैं। 
आरबीएसके के नोडल पदाधिकारी डॉ. अमरेंद्र कुमार ने बताया स्वास्थ्य विभाग द्वारा कार्यक्रम की सफलता के लिए गठित मोबाइल मेडिकल टीम जिले के हर आंगनबाड़ी केंद्र व स्कूलों में पहुंचती है। तब टीम में शामिल आयुष चिकित्सक बच्चों की स्क्रीनिंग करते हैं। ऐसे में जब सर्दी- खांसी व जाड़ा - बुखार जैसी सामान्य होगी, तब तुरंत बच्चों को दवा दिया जाता है, लेकिन बीमारी गंभीर होगी तब उसे आवश्यक जांच एवं समुचित इलाज के लिए निकटतम पीएचसी में भेजा जाता है। टीम में शामिल एएनएम बच्चों का वजन, उनकी हाइट, सिर की परिधि, बांह की मोटाई की नापतौल करेगी। फार्मासिस्ट रजिस्टर में स्क्रीनिंग किये गये बच्चों से संबंधित बातों को ऑन द स्पॉट क्रमवार अंकित किया जाता है। एक मोबाइल टीम में चार सदस्य होते हैं। जिसमें दो आयुष चिकित्सक,एक एएनएम एवं एक फार्मासिस्ट सह डाटा असिस्टेंट शामिल होते हैं। हरेक पीएचसी में दो टीम कार्य के लिए तैयार होती है एक टीम प्रतिदिन 125 बच्चों की स्क्रीनिंग कर उनका समुचित इलाज करना होता है। राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के अंतर्गत 0 से 18 वर्ष तक के सभी बच्चों के चार डी पर फोकस किया जाता है जिनमे डिफेक्ट एट बर्थ, डिफिशिएंसी, डिसीज, डेवलपमेंट डिलेज इन्क्लूडिंग डिसएबिलिटी यानि किसी भी प्रकार का विकार, बीमारी, कमी और विकलांगता है। इसमें 30 बीमारियों को चिन्हित किया गया है।