बगहा(प.च.) :: डॉo अम्बेडकर का महापरिनिर्वाण दिवस अनुसूचित जाति/जनजाति कर्मचारी संघ द्वारा धूमधाम से मनाया गया

विजय कुमार शर्मा, कुशीनगर केसरी, बगहा प.च. बिहार। अनुo जाति/जनजाति कर्मचारी संघ बगहा के तत्वावधान में आज शुक्रवार 6 दिसंबर को अनुमंडल के समक्ष स्थित संविधान निर्माता 'भारत रत्न' डॉo भीमराव अंबेडकर की प्रतिमा स्थल पर आयोजित 'परिनिर्वाण दिवस' के अवसर पर उनके अनुयायियों ने त्रिशरण पंचशील का पाठ करते हुए परिक्रमा पथ पर परिभ्रमण विहार करते हुए श्रद्धा सुमन अर्पित कर उनके पुण्यतिथि को 'महापरिनिर्वाण दिवस' के रुप में मनाया।
संघ के पदाधिकारी, कार्यकारिणी सदस्यों, अन्य कर्मचारी, अंबेडकर को मानने वाले स्थानीय लोगों ने उनके प्रतिमा स्थल के परिक्रमा पथ पर परिक्रमा कर शांति का संदेश देते हुए उनके बताए मार्गो पर चलने एवं आदर्शो को आत्मसात करने तथा प्रेम, दया, भाईचारा, करुणा, राष्ट्रीय एकता एवं अखंडता तथा विश्व बंधुता को कायम रखते हुए समरस समाज बनाने का संकल्प लिया। उक्त कार्यक्रम में समाज के सभी वर्गों के लोगों ने हिस्सा लिया तथा दिलेरी से बाबा साहब के आदर्शों पर चलने का आह्वान किया। उक्त जानकारी संघ के प्रचार सचिव सह मीडिया प्रभारी सुनिल कुमार राउत ने दिया और आगे बताया कि भीमाचार्य सह संघ के जिला सचिव जयप्रकाश 'प्रकाश' ने कहा कि डॉo अम्बेडकर आजीवन समाज के सभी वर्गों के सामाजिक उत्थान व राष्ट्रहित के लिए कार्य करते रहे एवं अपना जीवन समर्पित कर दिए। वे हमेशा समानता एवं भाईचारे का संदेश देते रहे। उनकी कीर्ति युगों युगों तक जीवंत रहेगी।
संघ के बगहा 2 प्रखंड अध्यक्ष शैलेश कुमार पासवान ने कहा कि बाबा साहब के संघर्ष के बदौलत ही आज हम सब को संवैधानिक रुप से समानता का अधिकार मिला है। वे समाज के प्रेरणास्रोत हैं। बगहा 1 प्रखंड अध्यक्ष राजू कुमार ने कहा कि डॉo अम्बेडकर ने समाज सुधारक का काम किया और लोगों को शिक्षित होने का संदेश दिया। उनका मानना था शिक्षा से ही सामाजिक परिवर्तन एवं जनकल्याण संभव है। संघ के प्रचार सचिव सह मीडिया प्रभारी सुनिल कुमार राउत ने कहा कि वे अपना सम्पूर्ण जीवन गरीबों, दलितों, वंचितों तथा समाज के पिछड़े वर्गों के उत्थान के लिए न्यौछावर कर दिए। वे कहते थे कि एक रोटी कम खाओ पर बच्चों को जरुर पढ़ाओ। किसी समाज के विकास की स्थिति को जानना हो तो उस समाज के महिलाओं की डिग्री (शिक्षा) देख ली जाय। वे समाज के लोगों को शिक्षित, संगठित होने तथा संघर्ष करने का संदेश दिए। वे हमारे श्रद्धेय आदर्श हैं। उनकी विद्वता, योग्यता अद्वितीय है। जैसा उल्लिखित है कि डॉo अम्बेडकर ने 14 अक्टूबर 1956 को नागपुर में एक औपचारिक सार्वजनिक समारोह का आयोजन किया और श्रीलंका के महान बौद्ध भिक्षु महत्थवीर चंद्रमणी से पारंपरिक तरीके से त्रिरत्न और पंचशील को अपनाते हुए बौद्ध धर्म को अपना लिया। 6दिसंबर 1956 को दिल्ली में उनका निधन हो गया। उनका अंतिम संस्कार बौद्ध रीति रिवाज के साथ मुंबई में हुआ। उनके अंतिम संस्कार के समय करीब 10 लाख समर्थकों ने उन्हें साक्षी मानकर बौद्ध धर्म की दीक्षा ली थी। उनकी पुण्यतिथि को महापरिनिर्वाण दिवस के रुप में मनाया जाता है। डॉo भीमराव अंबेडकर ने समाज से जातिवाद, अस्पृश्यता को समाप्त करने के लिए संघर्ष किए। कार्यक्रम के अंत में अध्यक्षता कर रहे जिला सचिव के मंगल शूक्त का पाठ करते हुए अप दीपो भव: भवतू सब्ब मंगलम के उद्घोष के साथ कार्यक्रम के समापन की घोषणा की गई।
मौके पर जयप्रकाश 'प्रकाश', शैलेश कुमार पासवान, रमाशंकर प्रसाद, राजू कुमार, सुनिल कुमार 'राउत', तिरेन्द्र राम, शंभू राम, भजू राम, मोहन माँझी, सुभाष प्रसाद, जयनारायण पासवान, विद्यासागर राम, सुमन कुमार, अंबिका राम, राजू शर्मा, बिनोद कुमार, राजेंद्र राम, संतोष बैठा, वीरेंद्र कुमार, राजकुमार राम, रामशंकर दूबे, अमरेश श्रीवास्तव सहित दर्जनों लोग उपस्थित रहे।