बेतिया(प.चं.) :: नियोजित शिक्षकों की समस्याओं का शीघ्र निदान करे सरकार : प्रो0 रणजीत कुमार

शहाबुद्दीन अहमद, कुशीनगर केसरी, बेतिया, बिहार। छपरा- बिहार शिक्षा मंच के संयोजक एवं सारण शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र के भावी युवा उम्मीदवार प्रो० रणजीत कुमार ने पं०चम्पारण के विभिन्न प्रखंड के उत्क्रमित/वित्तरहित/उच्चत्तर माध्यमिक विद्यालयों का दौरा कर शिक्षकों से रूबरू हुए।प्रो०कुमार ने कहा कि राज्य के नियोजित शिक्षक अपनी वाजिब मांगो, समान कार्य समान वेतन तथा समान सेवा शर्त को लेकर आक्रोशित एवं आंदोलनरत हैं। विदित हो कि समान कार्य समान वेतन के मसले पर बिहार सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में शपथ पत्र दाखिल कर कहा था कि सरकार नियोजित शिक्षकों के वेतन में 20 प्रतिशत वृद्धि करने के लिए तैयार है लेकिन सरकार ने अब तक अपना वायदा नही निभाया।सर्व शिक्षा अभियान एवं राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान के तहत केन्द्रांश ₹ 22500/- तथा राज्यांश ₹ 15000/- कुल ₹ 37500/- प्रत्येक नियोजित शिक्षक को वेतन के रूप में मिलना था लेकिन शिक्षको को ₹ 15000/- से ₹28000/- प्रतिमाह ही मिल रहा है। इन शिक्षकों के वेतन मद की राशि काटकर सरकार साइकिल योजना ,पोशाक योजना आदि चला रही हैं।यदि शिक्षकों के वेतन मद में प्राप्त ₹37500/- में सरकार वायदे के अनुरूप 20 प्रतिशत वेतन वृद्धि करती है तो एक हद तक समान कार्य समान वेतन की मांग पूरी हो जायेगी।। निजी कंपनियों एवं विद्यालयों में भी पी०एफ० कटौती की सुविधा उपलब्ध है लेकिन बिहार के नियोजित शिक्षकों को नियोजन प्रारंभ होने के 13 वर्ष बीत जाने के बावजूद भविष्य निधि कटौती की सुविधा से वंचित रखा गया है। 17 सितंबर 2019 को माननीय उच्च न्यायालय के फैसले में सरकार को निर्देश दिया गया है कि सभी शिक्षकों को नियुक्ति तिथि से इस सुविधा से आच्छादित करना सुनिश्चित किया जाए ।लेकिन इस कार्य में सरकार के स्तर पर कुछ कागजी घोड़ा दौड़ाने के अलावा कोई प्रगति नजर नहीं आ रही है । शिक्षा विभाग द्वारा 2015 से ही शिक्षकों के लिए नई सेवा नियमावली बनाने की प्रक्रिया जारी रहने की बात समाचार माध्यमों से मिलती रहती है और कहा जाता है कि निर्माण की प्रक्रिया अंतिम चरण में है ।विदित हो कि वर्तमान नियोजन नियमावली में पेंशन ,सेवांत लाभ ,सावधिक प्रोन्नति ,अंतर जिला स्थानांतरण उपार्जित अवकाश आदि की सुविधा शिक्षकों को हासिल नहीं है जिससे शिक्षकों में निराशा एवं हताशा का भाव कायम है।। इसी बीच शिक्षा विभाग ने अपने पत्रांक 1901 दिनांक 4.10. 2019 के द्वारा आदेश दिया है कि शिक्षक अध्ययन अवकाश का उपभोग नियोजन की तिथि से 7 वर्षों की सेवा अवधि पूर्ण होने के उपरांत ही कर सकेंगे। सरकार का यह आदेश विषय विशेषज्ञता हासिल करने, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा एवं एकेडमिक बेहतरी के मार्ग में बाधा उत्पन्न करने वाला कदम है ।शिक्षा विभाग के इस तरह के अदूरदर्शी निर्णय से स्पष्ट होता है कि सरकार के एजेंडे में शिक्षा एवं शिक्षक नहीं है।। विश्व विद्यालय के शिक्षकों की सेवानिवृत्ति की उम्र सीमा 65 वर्ष हैं ।माध्यमिक शिक्षकों के अवकाश ग्रहण करने की उम्र सीमा भी 60 वर्ष से बढ़ाकर 65 वर्ष करना गुणवत्तापूर्ण शिक्षा एवं शिक्षक हित में उचित प्रतीत होता है।
उपर्युक्त तथ्यों के आलोक में निवेदन किया है ::::...
1. संस्कृत एवं मदरसा के शिक्षकों की तरह ही मुख्यधारा के सरकारी विद्यालयों में कार्यरत शिक्षकों को भी वेतनमान ,पेंशनादि की सुविधा देने की अविलंब घोषणा किया जाए। 2. माननीय उच्च न्यायालय के आदेश के आलोक में नियुक्ति की तिथि से भविष्य निधि कटौती की प्रक्रिया जल्द से जल्द प्रारंभ किया जाए। 3. सरकार समान काम समान वेतन के मसले पर सुप्रीम कोर्ट में दायर अपने हलफनामे में शिक्षकों का 20% वेतन बढ़ाने संबंधी वायदा को अविलंब पूरा करें। 4. शिक्षक द्वारा अपने एकेडमिक बेहतरी हेतु लिए जाने वाले अध्ययन अवकाश को सवैतनिक करते हुए 7 साल की सेवा अवधि की सीमा को तत्काल निरस्त किया जाए। उम्र बीत जाने के बाद अध्ययन अवकाश का कोई मतलब नहीं रह जाएगा। 5. उत्क्रमित उच्च विद्यालयो को मध्य विद्यालय से अलग किया जाए ताकि माध्यमिक शिक्षकों का मान सम्मान कायम रहे। 6. प्रत्येक जिला में 25% से 50% तक दूसरे जिला के शिक्षक कार्यरत हैं।इससे अल्प वेतनभोगी शिक्षकों खासकर शिक्षिकाओं को अनेक तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। अतः प्रक्रियाधींन सेवा नियमावली में अंतर जिला स्थानांतरण का प्रावधान हर हाल में होना चाहिए। 7. शिक्षकों के अवकाश ग्रहण की उम्र सीमा 60वर्ष से बढ़ाकर 65 वर्ष किया जाए। 8. अप्रशिक्षित नियुक्त अनुसूचित जाति, जनजाति एवं अत्यंत पिछड़ी जाति के शिक्षकों की वरीयता का निर्धारण प्रशिक्षण की तिथि से ना कर नियुक्ति तिथि से किया जाए। 9. पुस्तकालय अध्यक्ष भी किसी खास विषय में स्नातक /परास्नातक होते हैं इसलिए उसे भी शैक्षणिक पद माना जाए और तदनुसार निर्देश जारी किया जाए।
स्पष्ट है कि बिहार में नियोजित शिक्षक सेवा नियमावली पूरी तरह से एकपक्षीय अपमानजनक एवं शिक्षक विरोधी हैं। शिक्षकों का वेतन लिपिक एवं अनुसेवक से भी कम है। इससे शिक्षकों के मन में गहरी निराशा एवं कमतरी का भाव बैठ गया है। गिरे मनोबल एवं अपमान बोध से ग्रसित शिक्षक से गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने की उम्मीद करना बेमानी है इसलिए पत्र में उठाए गए मुद्दों पर सहानुभूति पूर्वक विचार करते हुए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा एवं शिक्षक हित में सकारात्मक निर्णय लिया जाए। शिक्षक समाज का भरोसा एवं विश्वास जीतना सरकार एवं व्यवस्था के हित में होगा। प्रो०कुमार ने आगे कहा कि शिक्षकों के रुख से पता चलता है कि बदलाव सुनिश्चित है।