शहाबुद्दीन अहमद, बेेतिया(प.चं.), बिहार। रसोई गैस की कीमतों में बढ़ोतरी होना अस्वाभाविक माना जा रहा है , कीमतों में बढ़ोतरी होना गृहिणियों की बजट पर बोझ माना जा रहा है, इससे गृहिणियों के बजट फेल होने की संभावना बढ़ गई है। इसके अलावा रसोई गैस एवं पेट्रोलियम पदार्थों की दामों में बढ़ोतरी करना भाजपा शासित केंद्र सरकार की मोनोपोली के साथ साथ आर्थिक दिवालियापन का द्योतक है।देश के आर्थिक स्थिति अन्य देशों की तुलना में बहुत ही कम है, मगर सरकार इसको मानने को तैयार नहीं है, इसी का नतीजा है कि केंद्र सरकार पेट्रोलियम पदार्थों के दामों में बढ़ोतरी करना अपनी जिम्मेदारी समझती है, साथ ही यह बहाना करती है कि पेट्रोलियम पैदा करने वाले देशों के द्वारा बढ़ई जाने वाली कीमतों का असर से देश में रसोई गैस या पोलियम प्रोडक्ट की कीमत बढ़ाई जाती है। मगर शायद ऐसी बात नहीं, जिस अनुपात में पेट्रोलियम पैदा करने वाले देशों के द्वारा दामों में बढ़ोतरी की जाती है इसके अनुपात में केंद्र के पेट्रोलियम मंत्री के द्वारा जितनी दाम बढ़ाई जाती है इससे बहुत ज्यादा अनुपात में देश में पेट्रोलियम पदार्थों कीमत बढ़ाई जाती है ,खासकर रसोई गैस, पेट्रोल, डीजल एवं इसके बाई प्रोडक्ट पर जो नहीं होनी चाहिए।
इस बात की टिप्पणी करते हुए अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संघ (भारत )की जिला इकाई के जिलाध्यक्ष, सुरैया सहाब ने प्रेस विज्ञप्ति जारी करते हुए यह कहा है कि रसोई गैस की कीमतों में बढ़ोतरी करना मानवाधिकार का खुल्लम खुल्ला उल्लंघन है ,इससे महिलाओं की आर्थिक स्थिति के साथ-साथ मानसिक स्थिति पर भी बुरा असर पड़ता है ,क्योंकि जब बजट गड़बड़ा जाता है तो परेशानी बढ़ जाती है, केंद्र की भाजपा शासित सरकार से मांग करती हूं कि अभिलंब ही इस दिशा में उचित कार्रवाई करें और रसोई गैस के बढ़ी हुई अधिक कीमतों को तुरंत वापस लेने का काम करें ताकि आम उपभोक्ता अपने को सहज महसूस कर सकें।